बुधवार, 17 अगस्त 2022

नन्दगंज गाज़ीपुर में अगस्त क्रान्ति 1942




           अगस्त क्रान्ति 1942; स्वतंत्रता संग्राम के इस महायज्ञ में गाजीपुर जनपद, नन्दगंज थाना क्षेत्र की जनता ने सबसे बड़ी आहुति समर्पित की। यहाँ की जनता को स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु बड़ा गहरा मुल्य चुकाना पड़ा। सन 42 की अगस्त क्रांति को याद कर, यहाँ के बड़े-बुजुर्गों की आँखें नम हो जाती हैं। कलेजा काँप जाता हैं। आज़ादी की इस लड़ाई की याद आते ही बूढ़ी आँखों के सामने शहीदों की कुर्बानियों का वह मंजर नाच उठता हैं; ‛जब गोलियों की बौछारों के बीच, क्रांतिकारियों ने लूट ली थी मालगाड़ी।’ … बड़े - बूढ़ों की काँपती आवाज में उस स्याह दिन की घटना को सुनना, श्रोताओं के लिए किसी सजा से कम नहीं। ब्रिटिश प्रशासन की अमानवीयता पूर्वक क्रांतिकारियों की नृशंस हत्या से यहाँ की धरती रक्तरंजित हो गयी थी। 

           जनांदोलन का नेतृत्व भंगकर इस क्रांति को विफल करने के लिए ब्रिटिश प्रशासन द्वारा सूबे में हर तरफ गिरफ्तारियां की जा रहीं थीं। फिर भी जनता के उत्साह का कोई अन्त न था। आंदोलन के ध्वजवाहक नेताओं के गिरफ्तार होते ही जनता स्वतः ही शीघ्रता से नया नेतृत्व सृजित कर लेती थी। अपने नेताओं के गिरफ्तार होते ही तीतर बितर हो चुकी जनता बड़े ही नाटकीय ढंग से, कुछ ही घण्टों ने पुनः संगठित हो जाती थी। लगभग हर गिरफ्तारी के बाद शाम को शांत पड़ चुके क्रांतिकारी, अगले दिन प्रभात की किरणों से अनुरंजित समुद्री लहरों की भांति पुनः आंदोलित हो उठते थे। निकटवर्ती क्षेत्रों से इंद्रदेव त्रिपाठी, दलश्रृंगार दूबे, तथा विश्वनाथ सिंह गौतम आदि कांग्रेस कार्यकर्ता विद्रोह के आरम्भ मे ही बंदी बना लिए गए थे। नन्दगंज मे क्रांतिकारियों द्वारा पुलिया तोड़कर रेलमार्ग अवरुद्ध करने के कारण ब्रिटिश अधिकारी अत्यधिक क्रोधित हो गए थे। प्रशासन आंदोलन के नए नेता हरप्रसाद सिंह को गिरफ्तार करने के लिए सक्रिय हो गया। अगले दिन हरप्रसाद सिंह को बंदी बनाकर पुलिस थाने पर ले गयी। उन्हें पुलिस ने निर्दयतापूर्वक पीटा। हरप्रसाद सिंह मार खाते खाते बेहोश हो गए और पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। शाम तक जनता के दबाव में आकर पुलिस ने हरप्रसाद जी को जनता के साथ जाने दिया। ब्रिटिश पुलिस के टॉर्चर से अपने नेता की यह दुर्दशा देखकर जनता आगबबूला हो उठी। अगले दिन  14 अगस्त से, क्रोधित आंदोलनकारियों ने सरकारी अड्डों पर आक्रमण कर दिया। आंदोलनकारियों ने स्टेशन पर तिरंगा झंडा फहरा दिया और आवागमन के रास्ते को नष्ट कर दिया। 

              14 अगस्त को नन्दगंज स्टेशन पर विदेशी वस्त्रों और सेना के लिए खाद्यान्नों से लदी 52 डिब्बों की एक मालगाड़ी आ पहुँची। चुकि स्टेशन से तीन किलोमीटर पूर्व में रेलवे पुलिया को तोड़ दिए जाने के कारण मार्ग अवरुद्ध हो गया था अतः मालगाड़ी आगे न जा सकी। यह समाचार शीघ्र ही आस पड़ोस के गांवों में पहुंच गया। आंदोलनकारियों ने इस मालगाड़ी की सामग्री को लूटकर ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने की योजना पर विचार किया। क्रांतिकारियों की मंसूबों की भनक प्रशासन को भी लग गयी थी। नन्दगंज थाने के कोतवाल ने जिला कलेक्टर ए एस मुनरो तक यह सूचना पहुंचा दी। रातों रात पुलिस सुपरिटेंडेंट मि. मेज के नेतृत्व में पुलिस बल की एक सशस्त्र टुकड़ी स्टेशन पर पहुच गयी। संगीनों से सुसज्जित पुलिसकर्मी गाड़ी के इर्दगिर्द पहरा देने लगे। 

              आंदोलन के नए नेता बाबू भोलानाथ सिंह और जाने माने क्षेत्रीय पहलवान रामधारी सिंह यादव के नेतृत्व में आगामी आंदोलन की रूप रेखा पर विचार किया जाने लगा। हर प्रसाद सिंह के आह्वान पर क्रांतिकारी एक बार फिर एकजुट होने लगे। प्रमुख क्रांतिकारी बाबू भोलानाथ सिंह, हर प्रसाद सिंह और पहलवान रामधारी सिंह यादव का मत था कि नन्दगंज स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी को लूटकर, ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया जाना चाहिए। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए, बेलासी ग्राम निवासी डोमा लोहार और उनकी टीम को मालगाड़ी के फाटकों को खोलने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। काफी विचार विमर्श के बाद क्रांतिकारियों के बीच मालगाड़ी मे लदे विदेशी वस्त्रों की होली जलाना और खाद्यान्न को जरूरतमंद लोगों में बाँटना प्रस्तावित हो गया। पुनश्च क्रांतिकारियों द्वारा मालगाड़ी लूटने की योजना को गुप्त रखते हुए; अगले दिन के आंदोलन में नन्दगंज थाने का घेराबंदी कर, थाना पर राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराया जाने कि उद्घोषणा कर दिया गया। इस आंदोलन में अधिकाधिक लोगों को सम्मिलित होकर, थाने पर तिरंगा फहराने की सूचना शीघ्रता से पास पड़ोस के गांवों तक पहुँचा दिया गया। 


                 15 अगस्त 1942; क्रांतिकारियों ने नन्दगंज थाने पर कब्जा करने की योजना बनायी। तीन टोलियां तीन ओर से निकलीं। मैनपुर से श्यामनारायण, करण्डा से बधई सिंह और बलुआ से राम परिखा सिंह के नेतृत्व में सैकड़ों युवा क्रांतिकारी इस आंदोलन में सम्मिलित हुए। आंदोलन का जुलूस जैसे जैसे थाने की ओर बढ़ता गया, और अधिक संख्या में लोग इस झुंड में सम्मिलित होते गए। हाथों में झण्डा लिए और नारे लगाते हुए सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण लोग नन्दगंज की ओर चल पड़े। ‛भारत माता की जय!’ और ‛अंग्रेजों भारत छोड़ो।’ के गुंजयमान स्वरों से आकाश प्रतिध्वनित हो उठा। 

                  नन्दगंज के सशस्त्र आंदोलन को अमलीजामा पहनाने मे महत्वपूर्ण भूमिका जुनेद आलम की रही। उन्होंने अपने भाई मुस्ताक आलम और नैसाय के रामधारी पहलवान तथा पचदेवरा के विश्वनाथ यादव के साथ मिलकर थाने पर सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई। क्रांतिकारियों ने ग्राम कुरबान सराय मे शेख मुस्ताक आलम के आवास पर इस योजना के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक रणनीति बनाई। लाठी डंडे और छोटे-बड़े हथियारों के दम पर पुलिस से दो-दो हाथ करने की योजना बनी। सामान्यतः हम देखते हैं कि अगस्त क्रांति के दौरान अधिकतर आंदोलन अहिंसात्मक थे और महात्मा गांधीजी के आदेशानुसार बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न किये गए थे। पुनश्च यह ध्यातव्य है कि, तब के कुछ लोग गाँधीजी से भिन्न विचार रखते थे। विशेषकर दूर दराज के ग्रामीण युवा अंग्रेजी सरकार का जोरदार तरीके से विरोध करना चाहते थे। इस कारण इन आंदोलनों में कुछ एक जगहों पर हिंसक टकराव भी हुए। नन्दगंज भी अपवाद नहीं यहाँ के गरम दल के विचारों वाले क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से जमकर मुकाबला किया। 

                   मध्याह्न होने तक हज़ारों की संख्या में क्रांतिकारी तीन ओर से नन्दगंज पहुँच गये। और उधर प्रमुख क्रांतिकारी बाबू भोलानाथ सिंह, पहलवान रामधारी सिंह यादव, डोमा लोहार और हर प्रसाद सिंह के नेतृत्व में चौथा दल भी हुंकार कर उठा। “भारत माता की जय।”; “इंकलाब जिंदाबाद।” की नारों से वातावरण व्याप्त हो गया। आंदोलन की लहर थाने की ओर बढ़ चली। थाने पर पहुँचने पर पुलिस से मुठभेड़ हो गयी। इसमे परमेठ के बंधु सिंह शहीद हो गए। इससे क्रुद्ध क्रांतिकारियों ने थाने पर हमला बोल दिया। तत्कालीन थानाध्यक्ष विद्याशंकर पांडेय और पुलिस के स्टाफ थाना छोड़कर भाग खड़े हुए। क्रांतिकारियों ने थाने पर तिरंगा फहरा दिया और पुलिस की फाइलों में आग लगा दी। सभी लोग आजादी का जश्न मनाने लगे। मौके पर बरहपुर के बाबू भोलानाथ सिंह और पहलवान रामधारी सिंह यादव ने भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा की नन्दगंज स्टेशन पर 52 डिब्बों की उसे लूट लिया जाए और नन्दगंज स्टेशन पर भी तिरंगा फहरा दिया जाये। 

                   नन्दगंज थाने पर विजय प्राप्त कर उत्साह के उन्माद मे शोर मचाती भीड़ को सम्बोधित करते हुए बाबू भोलेनाथ सिंह ने कहा - “मेरे बहादुर मित्रों! यह परीक्षा की घड़ी हैं। यह आप सबके सहयोग और साहस का ही परिणाम है कि आज इस अंग्रेजी पुलिस के घर के ऊपर तिरंगा झंडा फहरा रहा हैं। सरकारी अफसर और उनकी पुलिस हमे आते देख भाग खड़ी हुई। भाइयों! रेलवे स्टेशन पर एक मालगाड़ी लगी हैं। जिसमे विदेशी वस्त्रों का जखीरा लदा हैं। और हमारे देश का आनाज फ़िरंगी सरकार परदेश भेज रही हैं। हम यह कदापि नहीं होने देंगे। हम सब स्टेशन पर चलेंगे। रेल के ऊपर तिरंगा फहरायेंगे और अपने देश के आनाज को आजाद कर, भूखे नंगे देशवासियों मे बाँट देंगे। आज हम सब मिलकर स्टेशन पर विदेशी वस्त्रों की होली जलायेंगे। भारत माता की … जय।” सारी जनता उत्साह से जयनाद कर उठी। लाठी डंडे लिए लगभग पांच हजार से अधिक लोगों का जन सैलाब स्टेशन की ओर बढ़ चला। 

                  आंदोलन सागर के ज्वार की तरह उमड़ता हुआ नन्दगंज स्टेशन पर चला गया। डोमा लोहार और उनकी टीम छिन्नी और हथोड़े से मालगाड़ी के तालों को तोड़ने लगी। कुछ युवा क्रांतिकारी स्टेशन की इमारत पर चढ़ गये और उसपर तिरंगा झंडा फहरा दिया। मालगाड़ी पर भी तिरंगा फहराने लगा। इस मालगाड़ी में लंकाशायर की मिलों मे बने विदेशी वस्त्र, आनाज की बोरियां, ब्रिटिश फौज के लिए खाद्य सामग्री, मांस के बंद पैकेट और सेना के लिए टेंट वर्दी इत्यादि सामान लदा था। क्रांतिकारियों ने मालगाड़ी के एक एक डिब्बे को लूटना और लुटाना शुरू कर दिया। इसी बीच पुलिस सुपरिटेंडेंट मि. मेज़ के नेतृत्व मे संगीनों से सुसज्जित पुलिस की एक सशस्त्र टुकड़ी ने पश्चिमी रेलवे क्रासिंग गेट से मोर्चाबंदी कर आंदोलनकारियों पर अंधाधुन गोलियां चलाना आरम्भ कर दिया। गोलियां दनादन चलाने लगीं और जनता अपने लाशों पर आगे बढती गयी। छणभर में पचासों जनवीर पृथ्वी पर लोटने लगे। भारत माता का आँचल शहीदों के रक्त से लाल हो गया। पुलिस के पास जबतक गोलियां रही वह नरसंहार करती रही। इस भीषण गोलीबारी के बावजूद क्रांतिवीर मैदान में डेटे रहे। मालगाड़ी के डिब्बों में आग लगा दी गयी। विद्रोहियों ने विदेशी वस्त्र लूटकर नष्ट कर दिया। जनता ने इस मोर्चाबंदी को तोड़ने का निश्चय किया। अबतक पुलिस की गोलियां भी समाप्त हो चली थीं; अतः वे सब गोलियां चलाते हुए पीछे हटने लगे। एकबार पुनः जनता की लाठियों के भय से फिरंगियों की पुलिस भाग खड़ी हुई। आंदोलनकारियों ने लगभग पूरी मालगाड़ी को अग्निदेवता को समर्पित कर दिया और रेलवे स्टेशन को विधिवत नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। काम समाप्त करके जनता बड़ी बहादुरी से अपने साथियों की लाशों को अपने कन्धे पर उठाकर वहां से हटने लगी। बहुत से लोग घटनास्थल पर ही वीरगति को प्राप्त हो गये और गोली से आहत बहुत से लोग रास्ते मे अपना प्राण छोड़ दिये। इस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने रक्त से नया अध्याय लिख दिया। 

                    सन् 42 के अगस्त क्रान्ति के दौरान नन्दगंज स्टेशन पर गाजीपुर जिला में सबसे अधिक खून बहा। सामान्यतः समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों ने इन आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। देश की समस्त जनता फ़िरंगी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध थी। पुनश्च नन्दगंज स्टेशन पर बलिदान देने वालों मे निकटवर्ती गांवों के अहीरों की संख्या बहुत अधिक थी। अगस्त क्रांति के पश्चात, दमन का दौर चलने पर त्रस्त जनता ने अपने क्रांतिकारी भाइयों का नाम व्यक्त नहीं किया और शनैःशनैः लोग उन्हें भूल गये। गांव जावर के पुरनियों के अनुसार लगभग 100 से 150 राउंड गोलियां चलाई गईं और लगभग सौ से अधिक लोग मारे गये। इस घटना में अनुमानतः लगभग हजार लोग घायल हुए थे। 15 अगस्त को क्रांतिकारियों ने नन्दगंज स्टेशन पर एक बार पुनः काकोरी कांड को अंजाम दिया। जनता ने दिन दहाड़े स्टेशन पर हमला कर दिया और मालगाड़ी का सारा सामान लूटकर नष्ट कर दिया। फ़िरंगी सरकार ने भी इस आंदोलन का अत्यंत बर्बरतापूर्ण दमन किया। पुलिस अधीक्षक मि. मेज़ ने बहुत निकट से जनता पर गोलियां चलवाई। अगस्त क्रांति की यह रक्तिम स्याह घटना आज भी यहाँ के लोगों के स्मृतियों को पीड़ित करती हैं। आज़ादी की लड़ाई से भी अधिक पीड़ादायक यह हैं कि आज की  नई पीढ़ी अपने पुरखों के त्याग और बलिदान को भूलती जा रही हैं। ... ... ...

अस्तु !!



सोमवार, 15 अगस्त 2022

अगस्त क्रांति 1942, गाजीपुर (उ.प्र.)


      प्रिय दैनन्दिनी

        आजादी का अमृत महोत्सव प्रगतिशील भारत के 75 वर्ष पूरे होने और यहाँ के लोगों, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को याद करने और जश्न मनाने के लिए भारत सरकार की ओर से की जाने वाली एक पहल है। पिछ्ले वर्ष, शिक्षा मंत्रालय तथा 'राष्ट्रीय पुस्तक न्यास' के संयुक्त प्रयास से स्वतंत्रता आन्दोलन के गुमनाम गौरवशाली इतिहास को दस्तावेजीकरण करने हेतु, एवं युवा लेखकों के लिए, PM's युवा मेंटरशिप योजना आरम्भ की गयी।… तुम तो जानती ही हो कि मैने भी इस योजना में भाग लिया और अगस्त क्रांति के दौरान अपने गृह जनपद गाजीपुर में हुए जन अन्दोलन के श्रुतिकथाओं को दस्तावेजीकरण का प्रयास किया था। दैनिके! मुझे लगता है कि शीर्ष 75 लेखकों मे स्थान ना बना पाने के पश्चात भी मेरा यह प्रयास पूर्णतः असफल नहीं रहा। इस प्रतियोगिता हेतु आलेख लिखने के वो दो महीने मेरे लिए सदैव अविस्मरणीय रहेंगे। इस दौरान बहुत कुछ सीखने समझने को मिला। 

प्रिये! दैनिके! तुम इस आलेख को अपने स्मृति पृष्ठों में संरक्षित करो

           

 "लेखक समाज के मार्गदर्शक एवं शिक्षक की तरह हैं।" 




                     अगस्त क्रांति 1942, गाजीपुर 

          मुहम्मदाबाद तहसील पर ध्वजारोहण का प्रयास 




         ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गये प्रस्ताव (क्रिप्स मिशन) को कांग्रेस कमेटी द्वारा विफल कर दिया गया।  तत् पश्चात 8 अगस्त 1942 को गाँधीजी के नेतृत्व में ‘अंग्रेजों भारत छोडो’ आंदोलन का आरम्भ हुआ। सीमित संचार साधनों के बावजूद भी यह दावानल प्रत्येक ग्राम-नगर में फैलने लगा। स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु देशवाशियों का समर्पण देखकर, गाँधीजी ने दृढ़संकल्प के साथ ‘करो या मरो’ का नारा दिया। ब्रिटिश शासन को इससे अप्रभावित देखकर कांग्रेस ने शीघ्र ही महात्मा गाँधी के नेतृत्व मे भारत को शीघ्र स्वतंत्र कराने हेतु सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ कर दिया। 

        9 अगस्त 1942 से सम्पूर्ण भारत में अभूतपूर्व जागृति पैदा होने लगी। सुसुप्त राष्ट्र की भावनाएँ जागृत होने लगी और समूचे राष्ट्र मे तरुणाई जाग उठी। उपनिवेशवाद के ब्रिटिश पाश से मुक्ति पाने के लिए भारतीय महामानव समुद्र मे स्वतंत्रता संग्राम की लहरें आन्दोलित होने लगी। शीघ्र ही स्वतंत्रता संग्राम की यह लहर तात्कालीन संयुक्त प्रान्त(उत्तर प्रदेश) के पूर्वांचल को भी आन्दोलित करने लगा। प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1957 से ही क्रान्ति करने की कला में दक्ष गाजीपुर जनपद की जनता ने इसमें बढ़-चढ़कर योगदान दिया। चीनी यात्री ह्वेनसाँग द्वारा चेन-चं-चू (योद्धाओं की भूमि) के नाम से सम्बोधित गाजीपुर जनपद का स्वतंत्रता संग्राम में सदैव से महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सन् 1857 संग्राम के महान नायक वीर कुँअर सिंह के सेनापति मैहर सिंह गहमर ग्राम(गाजीपुर) के निवासी थे। 1857 मे गिरफतारी के बाद इनको कालापानी की सजा हुई थी। सन् 1857 क्रांति के आरम्भकर्ता गाजीपुर (बालियाँ तब गाजीपुर जनपद का एक भाग होता था) के वीर सपूत मंगल पाण्डेय की यशोगाथा सर्वविदित है। 

        गाजीपुर जनपद का शेरपुर ग्राम स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को स्वयं में समेटे हुए है। सन 1942, अगस्त क्रांति के दौरान यहाँ के आठ नवयुवकों ने मुहम्मदाबाद तहसील पर राष्ट्रीय तिरंगा लहराते हुए, सीने पर ब्रिटिश सिपाहियों की गोलियाँ खाकर अपने बलिदान से इस राष्ट्रीय आंदोलन को अभिसिंचित कर दिया। ब्रिटिश सरकार न केवल आठ लोगो के शहादत और दर्जनों लोगों को घायल कर संतुष्ट हुई। अपितु बलूच सैनिकों की फ़ौज भेजकर शेरपुर गांव को लुटवाया और क्षेत्र के बहुत से गावों पर भारी जुर्माना भी किया गया। 






   गाजीपुर में जन आंदोलन 


      10 अगस्त का प्रभात समाचार पत्रों के अकल्पनातीत शीर्षकों के माध्यम से जनता के सामने राष्ट्रीय मर्यादा की  अपूर्व समस्या लेकर आया। आज बम्बई(मुम्बई) से अजीब संदेश आया। गाँधीजी ने सबको स्वतंत्र घोषित कर दिया और फिरंगियों को देश से निकल जाने का आदेश दे दिया। ब्रिटिश सरकार द्वारा कांग्रेस  नेताओं  को गिरफ्तार कर जेल में डाले जाने की खबरें दावानल की तरह गांव-गांव में फ़ैलाने लगीं। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। जनता की आशाएँ अपने नेताओं पर लगी हुई थी। इस तरह से अचानक नेतृत्व विहीन हो जाने पर जनता के सब्र का बाँध टूटने लगा। सम्पूर्ण जिले में जगह जगह सरकारी भवन, रेलवे स्टेशन और  डाकघर जनता के आक्रोश का शिकार होने लगे। 

       10 अगस्त  अरुणोदय के साथ ही पुलिस की रक्तिम टोपियों से शहर का कोना - कोना लाल हो गया। शस्त्रों से सुसज्जित अधिकारी गण, प्रमुख नेताओं को उनके घरों से गिरफ्तार करने लगे। आक्रोशित जनता ने शहर में हड़ताल कर दिया। शहर की स्थिति शोचनीय हो गयी। डी ए वी  स्कूल, सरकारी हाईस्कूल और सिटी हाई स्कूल के विद्यार्थियों ने मिलकर सड़कों पर जुलूस निकला। ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ के नारों से शहर का कोना कोना कंपित होने लगा। सिटी स्टेशन पर रेल रोककर सभाएं हुई। प्रथम श्रेणी मे बैठे एक अंग्रेज कर्मचारी की वर्दी फाड़कर फेक देनेपर पुलिस  सुपरिंटेंडेंट ने गोली चलाने की धमकी दी। इसपर आक्रोशित विद्यार्थी प्लेटफार्म पर लेट गये। उसके बाद शांतिपूर्वक साहसिक ढंग से वे पुलिस की लारियों में बैठकर थाना चले गये। 

       11 अगस्त को छात्रों और जनता की सम्मिलित भीड़ ने घाट स्टेशन को बर्बाद कर दिया। वहाँ के समस्त सरकारी कागज-पत्रों को जलाकर राख कर दिया गया। अगले दिन प्रातः प्रमुख सड़क पर विद्यार्थियों की जुलूस ने दो डाकघर ध्वस्त कर दिया और बिजली तथा टेलीफोन के खम्भों को भी उखाड़कर फेक दिया। सशंकित अधिकारियों ने सिटी हाई स्कूल के पास जुलूस को रोकने का प्रयास किया। वहाँ कलेक्टर और पुलिस सुपरिटेंडेंट सहित पुलिस फ़ोर्स का जमावड़ा हो गया। जनता की ‘इंकलाब जिंदाबाद’ की नारों से शहर काँप उठा। कोतवाल ने एक छात्र पर हंटर से प्रहार कर झंडा छीनना चाहा। इससे विद्यार्थी क्रुद्ध होकर पत्थरबाजी करने लगे। अंततः हारकर प्रशासन को पीछे हटना पड़ा। इस घटना ने शहर में सरकारी प्रतिष्ठा का अंत कर दिया। अगले तीन-चार दिनों तक लगातार शहर में जुलूस, सभाएं तथा हड़तालें होती रहीं। सामूहिक गिरफ्तारियां हुई। पुलिस ने स्थानीय नेता विश्वनाथ सिंह गहमरी को उनके गाँव रेवतीपुर से गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। बंदियों को कोतवाली में टार्चर करके आतंकित किया गया। इतना कुछ करने के बाद भी 22 अगस्त तक, जबतक की सेना नहीं आयी शहर में सरकारी प्रभुत्व स्थापित नहीं हो पाया। 

        गाजीपुर जिला का पश्चिमोत्तरी क्षेत्र(सादात) की जनता ने भी स्वतंत्रता प्राप्त करने का बीड़ा उठाया। 15 अगस्त को श्रीमार्कण्डेय, सदानन्द श्रोती आदि स्थानीय नेताओं के नेतृत्व में ग्रामीणों ने सभी सरकारी अड्डों पर अधिकार कर लिया। सरकारी गोदामों पर कब्जाकर झण्डा फहराती हुई जनता स्टेशन पर जा पहुंची। शीघ्र ही सादात थाने का दरोगा हामिद्दुल्ला पुलिस बल के साथ वहाँ पहुंच गया। दरोगा के गाली-गलौज का युवकों ने विरोध किया। अचानक दंभी दरोगा ने अकारण अलगूराम नामक एक अहीर युवक पर गोली चला दिया। युवक वही निष्प्राण होकर गिर पड़ा।  जनता को आक्रोशित देखकर सिपाही भाग खड़े हुए। जनता ने उनका थाना तक पीछा किया।  इस भगदड़ में थानेदार और एक सिपाही जनता के पैरों तले रौंद दिए गये। उसके बाद जनता ने सादात थाने को मृत पुलिसकर्मियों के साथ फूंककर उस सरकारी अभिमान को राख का ढेर बना दिया। 

        नन्दगंज की जनता को इस आंदोलन में बहुत बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा। इंद्रदेव त्रिपाठी, दलश्रृंगार दूबे तथा विश्वनाथ सिंह आदि नेता पहले ही गिरफ्तार कर लिए गए थे। आंदोलन का नेतृत्व संभाल रहे हरप्रसाद सिंह को एक दिन अचानक गिरफ्तार कर, पुलिस ने उनको निर्दयता पूर्वक पीट दिया। मार से बेहोश हो जाने पर उन्हें छोड़ दिया गया। इससे आक्रोशित जनता ने 14 अगस्त को एकसाथ सभी सरकारी अड्डों पर आक्रमण कर दिया। उसी समय नन्दगंज स्टेशन पर विदेशी वस्त्रों से लदी एक मालगाड़ी आ गयी। 15 अगस्त को जनता ने दिन-दहाड़े उस मालगाड़ी पर आक्रमण कर दिया। पुलिस सुपरिटेंडेंट मि. मेज के ऑर्डर पर रक्षा करती पुलिस टुकड़ी गोलीबारी करने लगी। साहसी जनता अपने ही लाशों पर बढ़ती चली गयी। पुलिस फ़ोर्स ने लगभग सौ राउंड गोलियाँ चलायी। क्षणभर में लगभग पचास जनवीर भारत माता के आँचल में सदा के लिए सो गये। फिर भी जनता ने विदेशी वस्त्रों को लूटकर उसका अग्नि दाह कर दिया। नन्दगंज स्टेशन पर गाजीपुर जनपद में सबसे अधिक रक्तपात हुआ। 

        14 अगस्त को जनान्दोलन ने सैदपुर तहसील का घेराव किया। गाजीपुर से औड़िहार पर्यन्त तक के सभी स्टेशनों पर जनता का कब्जा हो गया। सरकारी भवनों, रेलवे स्टेशन, और रेलगाड़ियों पर जनता ने विजय पताका फहराकर सैदपुर को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। जनपद के शाहीदाबाद, मरदह, कासिमाबाद आदि क्षेत्रों में भी जन समूह ने सरकारी भवनों को अपने नियंत्रण में लेकर उनपर तिरंगा फहरा दिया। सरकारी गल्ले का गोदाम लूटकर डाकखाना, रेलवे स्टेशन,ट्रैक, सड़क और पूल तोड़-फोड़ दिए गये। गहमर में प्रयाग और बनारस से गाँव लौट आये विद्यार्थियों ने विद्रोह का नेतृत्व किया। गहमर थाना पर जनता का अधिकार हो गया और वहाँ पर तिरंगा फहराने लगा। वर्षों से अत्याचार, अनाचार एवं पाप का बोझ ढ़ोती पुलिस की फाइलों को छात्रों ने अग्निदेवता को समर्पित कर दिया। तत्पश्चात रेलवे स्टेशन पर आक्रमण हुआ। पटरियां उखाड़कर फेक दी गयीं और यातायात नष्ट कर दिया गया। दिलदारनगर और गहमर थानों की पुलिस ने भागकर जमानियां थाना में आश्रय लिया। फिर निकटवर्ती गाँवों की जनता ने रामस्वरूप पाण्डेय आदि के नेतृत्व मे जमानियाँ थाना पर आक्रमण कर दिया। सिपाहियों के देखते देखते ही पुलिस के गढ़ को तोड़कर आंदोलनकारियों ने उसपर राष्ट्रध्वज फहरा दिया। डाकखाने, स्टेशन आदि से विदेशी सत्ता के चिह्न मिटा दिये गये। 

      गौसपुर और सरैया के बीच युद्ध की आवश्यकता पूर्ति हेतु ब्रिटिश सरकार एक हवाई अड्डे का निर्माण करा रही थी। किसानों की मीलों विस्तृत भूमि को सरकार ने बलात् खाली करा दिया था। आंदोलनकारियों(जनता और विद्यार्थियों) की बानर सेना ने मिलकर ब्रिटिश फ़ौज के लिए बन रही निर्माणाधीन छावनियों तथा हवाई अड्डे का लंकादहन कर दिया। 12/13 अगस्त को करीमुद्दीनपुर थाना के अंतर्गत जनान्दोलन और विद्रोह आरंभ हुआ। जगह जगह सभाएं हुई। आक्रोशित नवयुवकों ने रेल की पटरियाँ उखाड़कर ताजपुर और करीमुद्दीनपुर  के रेलवे स्टेशन को जला दिया। सप्ताह भर के लिए ही सही, क्षेत्र से विदेशी सत्ता पूर्णतः मिट गयी थी। 

      14 अगस्त को मुहम्मदाबाद हाईस्कूल के छात्रों ने युसुफपुर के रेलवे स्टेशन पर आंदोलन कर महात्मागाँधी के संदेश को जन-जन को सुनाया। विद्रोही छात्रों ने स्टेशन पर तोड़-फोड़ की और सरकारी गोदामों को लूट लिया। हरिद्वार राय, महादेव राय तथा बालेश्वर राय के निर्देशन में छात्रों ने बलुआ टप्पा और कठउत के पुल को तोड़कर यातायात को निकम्मा बना दिया। इसके पश्चात 18 अगस्त 1942, को मुहम्मदाबाद तहसील पर ध्वजारोहण करने के प्रयास में जो आन्दोलन हुआ वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सर्वाधिक विलक्षण घटना थी। गाँधीजी की अहिंसा, व्यावहारिक जगत में यहाँ अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँच गयी। डॉ. शिवपूजन राय के नेतृत्व में आठ नवजवानों ने तहसील भवन पर ध्वजारोहण के प्रयास में अपने को मातृभूमि पर बलिदान कर दिया। 



           क्रांति में शेरपुर का योगदान 


      10 अगस्त 1942, देश-प्रदेश और जनपद के स्थानीय नेताओं की गिरफ्तारी का समाचार विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से जंगल की आग की भाँति गाँव-गाँव में फ़ैल गया। श्री रामस्वरूप उपाध्याय और वशिष्ठ नारायण शर्मा द्वारा प्रदेश कांग्रेस कमेटी से आगे की योजनाएं लानें के पश्चात्, इन योजनाओं पर पुरे उत्साह से अमल होने की तैयारियाँ प्रत्येक गाँव में होने लगीं। कुछ दिनों बाद वाराणसी से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों का एक समूह के आगमन ने आग में घी डाल दिया। छात्र सीताराम राय(शेरपुर) वाराणसी से संदेश लेकर आये कि अब लूटपाट और सरकारी संपत्ति को क्षतिग्रस्त करना हमारी दैनिक दिनचर्या में शामिल किया जा चुका है। इस क्षेत्र के अन्य छात्र जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(वाराणसी) तथा डी.ए.वी. हाईस्कूल, सिटी और सरकारी हाईस्कूल(गाजीपुर) में पढ़ते थे इस आंदोलन में शामिल होने लगे। शीध्र ही आंदोलनकारियों का उत्साह आसमान की बुलंदियों को छूने लगा। 

      संभवतः 15 या 16 अगस्त को रेवतीपुर, शेरपुर और अन्य गाँवों के ग्रामीणों ने डेढ़गाँवा में एक भव्य सभा का आयोजन किया। वंश नारायण मिश्र के नेतृत्व में पटकनियां के ग्रामीणों का एक समूह भी इसमे शामिल हुआ था। ग्रामीणों ने उस दिन ‘कोर्ट ऑफ वार्ड्स’ के दफ्तर को जलाकर आंदोलन में लगान न देने की कसमें खाई। वहाँ से राष्ट्रीय नारों की गर्जना करते हुए, ग्रामीणों का एक दल नगसर के रेलवे स्टेशन को नष्ट करता हुआ दिलदारनगर तक चला गया। आंदोलनकारियों ने दिलदारनगर स्टेशन को क्षतिग्रस्त कर दिया और डाकघर को लूटकर थाना पर भी अधिकार कर लिया। सभा के बाद डेढ़गाँवा से, श्रीविश्वनाथ सिंह गहमरी के नेतृत्व में छात्रों के एक समूह ने जनपद मुख्यालय की कोतवाली तक एक लम्बा जुलूस निकाला। जुलूस मे छात्र गाते चल रहे थे - 

             क्या भगत सिंह को भाइयों, यूँ ही भुलाया जायेगा? 

             बेशकीमती लाल क्या यूँ ही लुटाया जायेगा? 

             काटकर सर जार्ज का और फूँककर इंग्लैण्ड को;

             नोक पर भाले के चर्चिल को बुझाया जायेगा । 

             बैंक इम्पीरियल खजाना, डाकखाने लूट लो, 

             कोतवाली और कचहरी भी जलाया जाएगा ।। 

    

      गाजीपुर सिटी हाईस्कूल के पास कलेक्टर और पुलिस सुपरिटेंडेंट ने भारी पुलिस बल के साथ इस जुलूस को रोकने का प्रयास किया। एक विद्यार्थी पर हंटर से प्रहार करके कोतवाल ने झंडा छीन लिया। इसपर छात्र क्रुद्ध हो गये। पुलिस द्वारा लाठीचार्ज कर बल प्रयोग करने पर छात्र ईंट-पत्थर फेंकने लगे। कुछ मिनट तक यह मार-प्रतिमार चलती रही। अंत में सरकारी अधिकारी अपनी प्रतिष्ठा का सत्यानाश कराकर लौट गए। शीघ्र ही छात्रों की भीड़ भी तीतर-बितर हो गयी। इसके बाद प्रशासन ने विश्वनाथ सिंह गहमरी को उनके गाँव रेवतीपुर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 

        स्थानीय नेताओं के गिरफ्तार हो जाने पर युवा छात्रों ने आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया। मुहम्मदाबाद तहसील का एक ग्राम शेरपुर के युवा छात्रों ने आंदोलन जारी रखा। 17 अगस्त 1942 अपराह्न, तीस साल के युवक डॉ. शिवपूजन राय के नेतृत्व में  शेरपुर गाँव के युवाओं का एक समूह हरिहरपुर तथा नजदीक के अन्य के गाँव के युवा छात्रों के साथ सरकारी कार्यालयों को क्षति पहुँचता हुआ महम्मदाबाद कचहरी पहुँचा गया। यातायात और संचार व्यवस्था भंग कर दी गयी। निचली अदालत की सभी फाइलें क्रांतिकारियों की क्रोधाग्नि में जलाकर भस्म हो गयी। अंत में नायक डॉ. शिवपूजन राय ने सरकारी हुक्मरानों को स्पष्ट शब्दों में चुनौती देते हुए कहा कि, - “साथियों कल हम सब लोग पुनः इसी वक्त यहां पर एकत्र होकर तहसील भवन पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को फहराएंगे।” जनान्दोलन को विसर्जित होने का आदेश उपरोक्त सुचना के साथ दिए जाने पर भीड़ में से किसी ने कहा कि अभी भी पर्याप्त समय है और मुख्यालय पर पुलिस बल भी कम तादात में मौजूद है। क्यों न हम तहसील भवन पर तिरंगा फहराने का शुभ कार्य अभी कर लें? इस प्रस्ताव से मर्माहत हुए, श्रीशिवपूजन राय  ने कहा कि, “हमने तहसील भवन पर तिरंगा फहराने का निर्णय पुलिस का भय अपने मन से निकलने के लिए ही किया है। हमें गोलियों से भयभीत नहीं होना है। पूर्व योजना के अनुसार हम कल इसी वक्त, इसी स्थान पर, सरकारी तंत्र की उपस्थिति में यह काम करेंगे। अधिक पुलिस बल का होना हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं। इससे हमे कोई फर्क नहीं पड़ता।” 

      आदोलनकारियों का भीड़ तीतर-बितर हो अपने घर लौट गया। तहसील के सरकारी कर्मचारी अब और अधिक चौकन्ने हो गये। पुलिस बल बढ़ा दिया गया। प्रशासन प्रतिरक्षा के प्रति अब और ज्यादा सतर्क हो गयी। 

       शाम तक इस आन्दोलन की चर्चाएं गाँव-गाँव में होने लगीं। इस समाचार ने सुदूर देहात तक आंदोलन की चिंगारी को जला दिया। ग्रामीण जन विशेषकर युवा, तहसील का घेराव कर, उसपर तिरंगा ध्वज फहराने का संकल्प करने लगे। सभी लोग बेसब्री के साथ प्रातः होने की प्रतीक्षा करने लगे। 


            तहसील भवन पर ध्वजारोहण 


     18 अगस्त 1942, मंगलवार; नागपंचमी के बाद पड़ने वाला मंगलवार महाबीर-जी के प्रसाद पर्व का दिन होता है। प्रातः सूर्योदय के बाद से ही जैसे-जैसे भगवान भुवन- भास्कर आकाश में ऊपर चढ़ने लगे, नवजवानों का उत्साह भी उसी प्रकार समुद्र के ज्वार की तरह बढ़ने लगा। गाँव-गाँव में महाबीरजी का पूजन करके और मीठी पुड़ी का प्रसाद ग्रहण करने के बाद नवजवानों में झण्डा फहराने को लेकर उत्साह व्याप्त हो गया। 

       शेरपुर मिडिल स्कूल पर युवकों की टोली एकत्रित होने लगी। हाथों में तिरंगा लिए धीरे धीरे युवाओं का दल शहीद बाग में चला गया। आजादी के दीवानों ने प्रयाण आरम्भ करने से पूर्व समवेत स्वरों में जयकारा लगाया,- भगवती माई की जय। बजरंग बली की जय। गांधीजी की जय। भारत माता की जय। वन्दे मातरम्।  युवाओं की आवाज, क्रुद्ध शेर की दहाड़ की तरह शेरपुर के गगन में गूँजने लगी। वीरों की टोली ने अभियान आरम्भ किया। आरम्भ में जुलूस छोटा था। परन्तु गगनभेदी नारों की दहाड़ सुनकर युवा वीर गाँव से निकलकर जुलूस में सम्मिलित होने लगे। डॉ. शिवपूजन राय के नेतृत्व में साथियों सीताराम राय, रामबदन राय, ऋषीश्वर राय, विश्वनाथ उपाध्याय,कृपाशंकर राय, रामाधार राय, हृदय नारायण पाठक, तिलेश्वर राय आदि क्रांतिकारियों के साथ इस सत्याग्रह आंदोलन की रूपरेखा पर चर्चा होने लगी। राष्ट्र की स्वतंत्रता हेतु क्रांतिवीर अपने प्रयाण पथ पर बढ़ने लगे। फिर एक जोशीला गाना आरम्भ हुआ - 

               शहीदों के खून का असर देख लेना 

                         मिटायेंगे जालिम का घर देख लेना। 

                जो खुदगर्ज गोली चलाएंगे हम पर 

                         तो कदमों में उनका ही सर देख लेना। 


        शीघ्र ही, ‘रंग दे वासंती चोला’ गाते हुए राष्ट्र भक्तों का दल गंगा का पहला छाड़न (भागड़) पार कर शेरपुर खुर्द पहुँचा। वहाँ उपस्थित जनसमुदाय ने जुलूस का अभिनन्दन किया। और वहाँ के वशिष्ठ नारायण राय, वंशनारायण राय, रामनेरश यादव, बाढ़ू राय, जगदीश राय, आदि के साथ आया युवकों का दल जुलूस में शामिल हो गया। वहाँ से आगे बढ़कर बाढ़ से भरे दूसरे भागड़(गंगा की उप धारा) नांव से तथा तैरकर पार करने बाद क्रांतिकारियों का समूह कुण्डेसर पहुँचा। कुण्डेसर पहुँचने पर वहाँ खड़े सोनाड़ी, कबीरपुर,अमरुपुर, तथा करइल क्षेत्र के अन्य गाँवो से आये युवक आन्दोलन में सम्मिलित हो गये। धीरे धीरे आंदोलनकारियों की संख्या हजार के ऊपर हो गयी। भारत माता के जयकार और अंग्रेजों भारत छोड़ो के उद्घोष से गगन गूँजने लगा। हाथों में तिरंगा लिए और ‘इंकलाब जिन्दाबाद! झंडा चला मुहम्मदाबाद!!’ का नारा लगाते हुए युवकों का दल पद यात्रा करते हुए मुख्य सड़क पर आगे बढ़ाने लगा। सुरतापुर से आगे पहुँचने पर सड़क के किनारे गिरे एक पेड़ के मंच से छात्र नायक डॉ. शिवपूजन राय ने ओजस्वी वाणी में क्रांतिवीरों को सम्बोधित करते हुए निम्न शब्द कहे- 

       “उपस्थित आप सभी लोगों को मै यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस युद्ध का भविष्य अब आपके हाथों में है। आप सभी को ऐसा कुछ भी नहीं करना है जिस पर बाद में आपको पछतावा हो। आप सभी अपनी लाठियां यहीं छोड़ देंगे और मेरे साथ अहिंसक सत्याग्रहियों की भांति, साथसाथ तहसील मुख्यालय तक चलेंगे।   हमारा मार्ग सत्य और अहिंसा का है। अतः जो लोग किसी भी तरह का घातक हथियार यहाँ तक की लाठी डण्डा भी लिए हों उन सबको यही छोड़ दें। भारत छोड़ो आन्दोलन की आग में कूदने के लिए आकुल वीर जवानों आप याद रखें, यदि पुलिस कर्मियों पर हमारा कोई भी जवान मिट्टी का एक छोटा टुकड़ा भी चलायेगा तो वह टुकड़ा हमारे कलेजे पर ही चोट करेगा।”

       भीड़ को उत्तेजित होते देख शिवपूजन राय ने फिर बोलना आरम्भ किया - “मेरे  बहादुर मित्रों! यह तो परीक्षा की घड़ी है। हमारी ओर बंदूकें तानकर तैयार की मुद्रा में पुलिस बल खड़ा है। हमें गोलियों की बौछार का सामना करना पड़ सकता है। यह सरकारी बल प्रदर्शन सिर्फ इसलिए ही किया गया है कि, हमें डर लगे। यह सत्य है की ये सभी हमारे भाई जो अब गद्दार बनकर हम पर बंदूक ताने हुए अपना हित साधने में लगे हैं। ये सभी कातिल हैं। अहिंसा की पहचान गोलियों की गूंज से प्रतिभाषित होती है। हमें इस परीक्षा को पास करना है। हम इनका सामना अपनी बदले की प्यास बुझाने हेतु करने नहीं आये हैं। हमें अपना लक्ष्य किसी को मारकर नहीं मर कर प्राप्त करना है। देश के युगपुरुष गांधीजी का यही सन्देश है। हम उनके आदेश की अवहेलना नहीं कर सकते हैं।” 

             भारत माता की जय…. 

      ‘मारकर नहीं मर कर’ का आदेश एक प्रभावशाली आदेश था। भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े जीवत व्यक्तियों के कथनानुसार उस वक्त सामान्य तौर पर यह प्रचलित था कि ‘करो या मरो’ की अपेक्षा ‘करो और मारो’ पर अमल किया जाये। 

       भीड़ में तनाव और बढ़ा; पर अपने नेता के अनुदेशों को लोगों ने मन से स्वीकार किया। लाठियां वहीं छोड़ दी गयीं और निहत्थे लोगों की टोली मुहम्मदाबाद तहसील की ओर बढ़ चली। अब आंदोलनकारियों की संख्या हजारों में हो गयी। जुलूस आगे बढ़ने लगा। तहसील की वस्तुस्थिति की जानकारी लेने हेतु पूर्व में भेजे गए विश्वनाथ उपाध्याय ने बताया की तहसील पर पैंतीस सशस्त्र पुलिस के जवान तैनात है। अहिरौली पहुंचने पर आपसी परामर्श से निर्णय हुआ कि अस्सी जांबाज जवानों की टोली तहसील भवन के पीछे से पहुंचकर दो दो लोग एक एक सिपाही को बाहों में जकड़ लेंगे। ताकि वे हथियार न चला सके। फिर सामने वाले जुलूस के लोग तहसील भवन पर झंडा फहरा देंगे। इस तरह से झंडा भी फहर जायेगा और हिंसा भी नहीं होगी। इन  अस्सी जवानों का चयन विश्वनाथ उपाध्याय और ऋषीश्वर राय ने किया। इनलोगों ने अहिरौली से सड़क छोड़कर पगडंडी और खेतों से होकर तहसील के पीछे पहुंचने का निश्चय किया। और आंदोलनकारियों का मुख्य जन सैलाब आप नायक शिवपूजन राय के नेतृत्व में मुख्य मार्ग से शाहनिन्दा से उत्तर मुड़कर तहसील की ओर चल पड़ा। 

       मुहम्मदाबाद में मंगलवार को साप्ताहिक बाजार लगता था। जन आन्दोलन के पहुंचते ही सम्पूर्ण हाट-बाट गगनभेदी नारों से गूँजने लगा। मुहम्मदाबाद प्रखंड के विभिन्न गाँवों से हजारों  संख्या में आयी हुई जनता इस सत्याग्रह आंदोलन में सम्मिलित हुई। एक अनुमान के अनुसार सत्याग्रहियों की संख्या दस हजार के ऊपर थी। भीड़ का मुख्य जत्था तहसील परिसर की तरफ बढ़ चला। जन नायक डॉ. शिवपूजन राय ने नारा दिया- पुलिस हमारे भाई हैं… और साथ ही भीड़ ने पीछे से प्रतिध्वनित किया- 

                         पुलिस हमारे भाई है, इनसे नहीं लड़ाई है। 

                    अंग्रेजो भारत छोड़ो।  …          भारत माता जय। … 

      इंस्पेक्टर शिवकेदार सिंह के साथ सशस्त्र पुलिस का एक जत्था सामने से आ रही भीड़ को तहसील भवन के बहार ही रोक दिया। जुलूस के नेता डॉ. शिवपूजन राय के साथ जगदीश शर्मा, रामबदन राय और विश्वनाथ उपाध्याय अगली पंक्ति में चल रहे थे। 

       हृदय नारायण पाठक के संकेत पर तहसील भवन के पीछे से आयी जवानों की टोली के कई युवक  दीवार फांदकर तहसील भवन में प्रवेश कर गये। अंदर दो बंदूकधारियों को टहलता देख, दल के नेता तिलेश्वर राय ने ललकारा- वीरों आगे बढ़ो; और अपना मकसद पूरा करो। अदम्य साहसी ऋषीश्वर राय अपना दोनों हाथ ऊपर उठाकर, “पुलिस हमारे भाई हैं, इनसे नहीं लड़ाई है।” कहते हुए उन पुलिसकर्मियों की ओर बढ़े । “आगे मत बढ़ो । गोली चलेगी।” की चेतावनी को नजरअंदाज कर, “भारत माता की जय” गुर्राता हुआ वह शेर त्वरित वेग से उन दोनों सिपाहियों के बंदूकों को पकड़ लिया। किन्तु एक अन्य सिपाही ने उसपर गोली चला दी। साथी नारायण राय ने, ऋषीश्वर पर गोली चलाने वाले सिपाही को पकड़कर पटक दिया। शोर सुनकर अन्य सिपाही भी आ गये। एक सिपाही ने नारायण राय के पेट में संगीन भोक दी। इसी क्रम में वशिष्ठ नारायण राय, ललिता राय, और राजा राय बंदूकों की छीना झपटी में गोली खाकर वहीं घटना स्थल पर ही शहीद हो गये। शेष सभी लोग सिपाहियों से छिना हुआ दो बंदूकों को साथ लेकर भाग गये।  

       अचानक पीछे हुए आक्रमण से सिपाहियों का व्यूह बिगड़ गया। फिर डॉ. साहब के साथ के लोग तहसील परिसर में प्रवेश कर गए। सिपाहियों द्वारा अन्धाधुन्ध आकाश फायरिंग करने के कारण भीड़ में भगदड़ मच गयी। डॉ. शिवपूजन राय हाथ में तिरंगा लिए, पश्चिम से होकर जामुन के पेड़ तक पहुँच गये। तहसीलदार इब्राहिम अंसारी के चेतावनी के साथ ही गोली की सनसनाहट हुई और डॉ. साहब की बायीं जांघ से खून गिरने लगा। तभी दूसरी गोली उनके सीने में लगी, और फिर तीसरी भी।  वे तिरंगा लिए मातृभूमि की गोद में उसी जामुन के पेड़ के पास जहाँ पर उनकी वक्षप्रतिमा लगी है, चिर निद्रा में सो गये। साथ आये जमुना राय और रामबदन राय को भी क्रमशः बाँह और पैर में गोली लगी; फिर भी वे दोनों पुलिस की पकड़ से दूर निकल गये। डॉ. साहब के शव के साथ अकेले जगदीश शर्मा रह गए जिन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और रस्सी से बांधकर एक कोठरी में बंद कर दिया। घायलों की कराहती आवाजों से वहाँ का दृश्य कारुणिक और भयावह हो गया था। क्रूर इंस्पेक्टर शिव केदार गालियाँ दे रहा था- “साले! तड़प तड़प कर मरो। आये  थे  सरकारी खजाना लूटने। अब किये का फल भोग।” बहसी तहसीलदार इब्राहिम अंसारी जिन सिपाहियों की गोली खर्च नहीं हुई थी, उन्हें गाली दे रहा था। उसी समय सोनाड़ी के नगीना तिवारी भी पकड़ लिए गये। उनको भी जगदीश शर्मा के साथ एक ही कोठरी में बंद कर दिया गया। और घायल हृदय नारायण पाठक को लाशों के साथ दूसरी कोठरी में बंद कर दिया गया। तहसील भवन में ध्वजारोहण के प्रयास में डॉ. शिवपूजन राय अपने पांच साथियों के साथ घटनास्थल पर वीरगति को प्राप्त हो गये। और दो लोग अस्पताल में उपचार के दौरान मर गये। दूसरे दिन मुहम्मदाबाद के पुलिस बल के लोग गाजीपुर जनपद को कूच कर गये। मन में डर था की लोग प्रतिशोध में पुनः तहसील पर हमला न कर दें। 


           ********                               ********                          ******** 


        अष्ट शहीद

 

  1. डॉ. शिवपूजन राय (जन्म-1910)    सुपुत्र- श्री वीरनायक राय 

  2. श्री ऋषीश्वर राय (जन्म-1908)      सुपुत्र- श्री राजनारायण राय 

  3. श्री रामबदन उपाध्याय                  सुपुत्र- श्री दीपन उपाध्याय 

  4. श्री नारायण राय                          सुपुत्र- श्री नागेश्वर राय

  5. श्री बंश नारायण राय 

  6. श्री राज  नारायण राय 

  7. श्री वंश नारायण राय

  8. श्री वशिष्ठ राय 

 


      अंग्रेजी शासन की दृष्टि में (सरकारी अभिलेखानुसार) इस घटना को विद्रोहियों के झुण्ड द्वारा संगठित होकर सरकारी भवनों, तहसील, पुलिस स्टेशन,डाकखाना और मुंसफी पर हमला करने और सरकारी खजाना लूटने का, बर्बर आक्रमण की संज्ञा दी गयी। इस आक्रमण को पूर्णतया विफल करने लिए निहत्थी जनता के ऊपर गोली चलवाकर आठ लोगों को मारने तथा दो लोगों को गिरफ्तार करने वाले क्रूर पुलिस इंस्पेक्टर शिवकेदार सिंह को शासन द्वारा पुरस्कृत किया गया और तहसीलदार इब्राहिम अंसारी को उसके कुशल नेतृत्व तथा दूरदर्शिता के लिए सम्मानित किया गया। 


                शेरपुर पर बलूची सेना का आक्रमण 

 

    18 अगस्त 1942 को मुहम्मदाबाद तहसील पर तिरंगा झंडा फहराने के प्रयत्न में, पुलिस से संघर्ष में आठ लोगों के शहीद हो जाने के बावजूद भी ब्रिटिश प्रशासन का प्रतिशोध शांत नहीं हुआ।  29 अगस्त 1942 को एक स्टीमर तथा उससे बंधी दो नावों पर सवार होकर कमिश्नर नेदरसोल हार्डी, डी.एम. मुनरो और एस.पी. पोलक एक कंपनी बलूची सैनिकों के साथ सेमरा गाँव के रस्ते भंगड़(गंगा का उपधारा) पार कर शेरपुर गाँव के पूर्व में आ गये। सभी सैनिकों के एकत्रित होते ही सीटी बजी और सैनिक गाँव पर टूट पड़े। प्रारम्भ में उन्होंने हवाई फायर कर आतंक पैदा किया। गाँव के युवकों ने इकट्ठा होकर भगवती माई का जयकार करके ब्रिटिश सेना से मोर्चा लेने का विचार किया। किन्तु बुजुर्गों के समझाने पर वे शांत हो गये। सैनिकों के आक्रमण से आतंकित गाँव के लोग भागकर सीवान में बने डेरों में छिप गये। ब्रिटिश सेना ने बर्बरता पूर्वक गांव को लूटकर घरों में आग लगा दिया। एक अनुमान के मुताबिक(गांव के बुजुर्गों के अनुसार) लगभग अस्सी घरों को जला दिया गया और चार सौ से अधिक घरों को लूटा गया। फौजियों ने लूटपाट करने के साथ ही गांव के कई निरीह-निर्दोष लोगो को गिरफ्तार कर लिया। और रामाशंकर लाल व खेदन यादव की निर्मम हत्या कर दी। संपूर्ण गांव को श्मशान बनाकर कलेक्टर ने पुरे गांव पर बीस हजार रूपया का अर्थ दंड लगाकर फ़ौज सहित बंदी लोगों को लेकर जनपद मुख्यालय चला गया। 


   









        अगस्त क्रांति 1942, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक सर्वव्यापक व निर्णायक संघर्ष रहा। इसके परिणाम स्वरूप स्वतंत्रता का सूर्योदय हुआ। गाजीपुर जनपद के हर कोने में चला ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ का संघर्ष पूर्वांचल ही नहीं प्रदेश और देश में भी चर्चित रहा। इसकी चरितार्थता इस अर्थ में रही की इसमें जन सहभागिता स्वतः स्फूर्त रही। देश-प्रदेश और जनपद के सभी नेताओं की गिरफ्तारी से  आक्रोशित जनता विशेषकर नवयुवकों ने आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया। यह विशेष उल्लेखनीय है कि यह आंदोलन पूर्णतः अहिंसक रहा। निहत्थी जनता पर लाठी ही नहीं गोली भी चलाई गई।  जिससे नंदगंज और मुहम्मदाबाद में लोग घायल और शहीद हुए। नव-जवानों का खून गर्म होते हुए भी युवकों ने महात्मा गांधी की अहिंसा की नीति को मूर्त रूप दिया और पुलिस पर एक धेला भी नहीं चलाया। युवा छात्रों द्वारा मुहम्मदाबाद तहसील पर किया गया ध्वजारोहण का प्रयास निःसंदेह अगस्त क्रांति की शिखरतम परिणति थी। आठ नवजवानों ने स्वतंत्रता के यज्ञ में अपनी आत्माहुति देकर जन-जन में स्वतंत्रता की चिंगारी को  जला दिया। इस अगस्त क्रांति में देश-प्रदेश के समस्त हुतात्माओं ने अपनी रक्त मसी से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अविस्मरणीय अध्याय लिखकर शौर्य, साहस और कीर्ति का उज्जवल ध्वजा लहरा दिया। 

         वन्दे मातरम् ! 


     शिवशङ्कल्पमस्तु ! 




संदर्भ : 

  1. The Indian Nation in 1942, Edited by Gyanendra Pandey  

https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.99798/page/n147/mode/1up?view=theater 

  1. स्वतंत्रता सेनानी पं. जगदीश शर्मा  का संस्मरण 

  2. जनश्रुति, गांव और क्षेत्र के अन्य वृद्ध लोगों (पुरनियों) का संस्मरण, 

          

मातृभूमि आदिशक्ति


मातृभूमि  आदिशक्ति

                                                     


त्वमेव  मातृभूमिका      त्वमेव    मातृकाक्षरा ।

त्वमेव सुप्रसू-परा             त्वमेव धी-परापरा ।।१।।

      

त्वमेव   मन्त्रसंहिता     त्वमेव    वाङ्मयाश्रया ।

त्वमेव   सर्वचिन्मया     महालया   शुभाश्रया ।।२।।


सहस्र-दीप-दीपिनी ज्वलल्लिपिं सुलिम्पिनी ।

सुवर्ण-स्वर्ण-तापिता  तपस्विनी   प्रतापिनी ।।३।।


सुभुक्ति-मुक्ति-शुक्तिनी विनाश-घात-घातिनी ।

सदातियुद्ध-घातिनी  महाति   शत्रु - पातिनी ।।४।।


प्रचण्ड-चण्ड-चण्डिका  चमच्चमत्कृताङ्गिनी । 

शिवा सुशैल-श्रृङ्गिणी    सुचारु-सर्व-सङ्गिनी ।।५


कराल-काल-कालिके  कपाल-मालिनी-कले ।

त्वमेव मातृ-मातृके       नमामि    पुत्रवत्सले ।।६।।


त्वमेव  भारती  मही    त्रिकोण-देश-वासिनी ।

त्रिकोण-मानचित्रिणी  सुयन्त्रिणी सुहासिनी ।।७।।




यदा सुशान्तिरागता    त्वमेव शान्तिरूपिणी ।

यदा   महापदागता       त्वमेव  प्राणरक्षिणी ।।८।।


त्वमेव चण्ड-चण्डिका  यदा हि युद्धमागता ।

त्वमेव शक्ति-सञ्चिता यदा हि क्षीणतागता ।।९।।


समुद्र-त्रिक-भुजाधृता हिमाद्रि-मण्डपाच्छदा ।

नदी-सहस्त्रधा  सदा   सुशोभिता  सुतीर्थदा ।।१०।।


सुमङ्गली  धराम्बरा    चिदम्बरा   ऋतम्भरा ।

सदाशु-सत्यमेव तु     स्वयम्प्रभा  स्वयंवरा ।।११।।


अनिन्द्यसुन्दरी  विशाललोचना  सुभाषिणी ।

अनुत्तरा अनच्क-शून्य-अच्क-सर्वतोषिणी ।।१२।।


सदा   सुदेव-संस्तुता      सदा  महर्षि-पूजिता ।

सदा सुशस्य-स्वस्तिका सदा सुमन्त्र-कूजिता ।।१३।।



ममत्व-मुर्ति-मङ्गला     समत्व-सूक्ति-सङ्गमा ।

समस्त-वेद-वन्दना   सुतन्त्र-मन्त्र-आगमा ।।१४।।


विभूति-भूति-भावना सुकल्प-कल्प-कल्पना ।

त्वमेव  पुत्रवत्सला      वसुन्धरा  शुभाल्पना ।।१५।।


त्वमेव  वागधीश्वरी      सरस्वती   विभावना ।

पुरातनी   सुनूतना      द्विकूलगा   सनातना ।।१६।।


नमामि  देवि  मातृके    नमामि  मातृभूमिके ।

नमामि  भूमिमातृके   नमामि  कष्ट-शामिके ।।१७।।


त्वमेव  मातृभूमि  हे!      सुभूमिमातृके  परे ।

नमामि दिव्यज्ञानदे    नमामि ध्यान-श्री-धरे ।।१८।।



 ।।इति श्रीनिशान्तकेतुविरचितं आदिशक्तिमातृभूमिस्स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।